ब्रह्मचारी छात्रों को भारतीय संस्कृति, वैदिक विज्ञान तथा राष्ट्र की उन्नति के लिए समर्पित करना। सनियमित रूप से प्रतिदिन – ध्यान, योग, आसन, प्राणायाम, व्यायाम, क्रीडा, अतिथि-सेवा, सात्विक भोजन व पठन-पाठन के द्वारा सर्वांगीण रूप से शारीरिक, बौद्धिक एवं आत्मिक विकास करना।स प्राचीन आर्ष (ऋषि प्रणीत) प्रणाली को जीवित रखकर समाज मंे व्याप्त समस्त अन्धविश्वास व कुरीतियों को समाप्त करना। सराष्ट्रभाषा एवं संस्कृत भाषा के माध्यम से वेद-वेदांग, दर्शन शास्त्र, उपनिषद्, अष्टांग योग एवं व्याकरण के उच्चस्तरीय ज्ञान के साथ आधुनिक विषय गणित, विज्ञान, अंग्रेजी, कम्प्यूटर आदि का अपेक्षित ज्ञान कराकर प्रकाण्ड वैदिक विद्वान् धर्मात्मा, स्वावलम्बी, तथा देश भक्त नागरिक बनाना। स यज्ञ व वृक्षारोपण द्वारा पर्यावरण में व्याप्त प्रदूषण व वेदमन्त्रों के उद्घोष द्वारा ध्वनि प्रदूषण को समाप्त करना साथ ही आयुर्वेद, योग, प्राणायाम, आसन आदि के द्वारा स्वस्थ व सुखी समाज की स्थापना करना तथा गोवंश का पालन व संवर्धन करना। स साहित्य प्रकाशन व वितरण करना स आवश्यकतामंदों का सहयोग करना। स आर्य विद्वानों व कार्यकर्त्ताओं का सहयोग व सम्मान करना गुरुकुल के उद्देश्य हैं।
संस्था की विशेषताएं
मध्य प्रदेश में प्राचीन वैदिक शिक्षा प्रणाली का एक मात्र व्यवस्थित शिक्षण केन्द्र। स योग्य आचार्य एवं त्यागी, तपस्वी, अनुभवी शिक्षकों द्वारा अध्यापन के साथ ही उत्तम आवास, जल, विद्युत व दूरभाषादि की आवश्यक सुविधा। स प्रत्येक ब्रह्मचारी (छात्र) व उपस्थित गुरुकुलवासी की पक्षपातरहित समान रूप से भोजन, आवास, चिकित्सा आदि की व्यवस्था की जाती है। स प्रतिदिन आसन, व्यायाम, प्राणायाम, यज्ञ, वेदपाठ तथा वेदमन्त्रों की व्याख्या की जाती है। प्रातः काल चार बजे से रात्रि दस बजे तक आदर्श एवं व्यस्त गुरुकुलीय दिनचर्या है। स गुरुकुल में आयुर्वैदिक एवं प्राकृतिक चिकित्सा की व्यवस्था है।
इस गुरुकुल में राष्ट्रपति से सम्मानित महामहोपाध्याय पं. युधिष्ठिर मीमांसक जी जैसे संस्कृत व्याकरण के उद्भट विद्वान् का यज्ञोपवीत संस्कार हुआ। वेद- वेदांग के प्रकाण्ड विद्वान् व अनेकों महान् ग्रन्थों के लेखक पूज्य स्वामी ब्रह्ममुनि परिव्राजक जी ने इस गुरुकुल में अध्यापन कार्य किया। वैदिक योग के महान् ज्ञाता पूज्य स्वामी सत्यपति परिव्राजक जी द्वारा योग प्रशिक्षण दिया गया। स महान् क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आजाद आदि ने इस गुरुकुल में कुछ काल तक रहकर देश को स्वतन्त्र कराने का कार्य किया । इन महापुरुषों पर गुरुकुल को गर्व है। स यहां गुरु शिष्य प्रणाली है। उच्च काक्षाओं के ब्रह्मचारी अपने छोटे भाईयों का अध्यापन से सहयोग करते है जिससे इनमें अपने विषय में परिपक्वता आती है। यथासमय राज्य स्तरीय अखिल भारतीय प्रतियोगिताआंे मंे हमारे छात्र भाग लेते है, और पुरस्कार प्राप्त करते है। स विद्यार्थियों की वाक्शक्ति को बढ़ाने हेतु वाग्वर्धनी सभा का आयोजन भी किया जाता है। ससामाजिक राष्ट्रीय गतिविधियों भी गुरुकुल की यथोचित भागीदारी बनी रहती है फिर चाहे वह जल स्वच्छता अभियान हो या भ्रष्टाचार उन्मूलन हेतु अन्ना हजारे, स्वामी रामदेव जी का अनशन हो, गरीबों में वस्त्र वितरण अन्न वितरण या अनाथ बच्चों के पालन पोषण की व्यस्था हो। गुरुकुल होशंगाबाद की स्थापना को 100 वर्ष होने पर 5, 6,7 नव. 2011 ई. को भव्य, स्मरणीय, विशाल स्तर पर गुरुकुल शताब्दी समारोह आयोजित किया गया। स गुरुकुल होशंगाबाद के प्राचार्य स्वामी ऋतस्पति जी परिव्राजक (आचार्य जगद्देव नैष्ठिक जी) के आचार्य पद को सुशोभित करने के 25 वर्ष होने पर वैदिक संस्कृति को जन-जन के मनोमस्तिष्क में स्थापित करने व नवयुवकों के मन में धर्मप्रचार का अंकुर जागृत करने व वेदादि सत्य शास्त्रों का प्रचार- प्रसार करने के उद्देश्य से 27, 28, 29 नवम्बर 2015 को गुरुकुल में भव्य व स्मरणीय आचार्यपद रजत जयन्ती समारोह का आयोजन किया गया। प्रतिवर्ष भव्य वर्षिकोत्सव का आयोजन का किया जाता है।